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प॒थस्प॑थः॒ परि॑पतिं वच॒स्या कामे॑न कृ॒तोऽअ॒भ्या᳖नड॒र्कम्। स नो॑ रासच्छु॒रुध॑श्च॒न्द्राग्रा॒ धियं॑ धियꣳ सीषधाति॒ प्र पू॒षा ॥४२ ॥

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पद पाठ

प॒थस्प॑थः। प॒थःऽप॑थः॒ इति॑ प॒थःऽप॑थः। परि॑पति॒मिति॒ परि॑ऽपति॒म्। व॒च॒स्या। कामे॑न। कृ॒तः। अ॒भि। आ॒न॒ट्। अ॒र्कम् ॥ सः। नः॒। रा॒स॒त्। शु॒रुधः॑। च॒न्द्राग्रा॒ इति॑ च॒न्द्रऽअ॑ग्राः ॥ धियां॑धिय॒मिति॒ धिय॑म्ऽधियम्। सी॒ष॒धा॒ति॒। सी॒स॒धा॒तीति॑ सीसधाति। प्र॒। पू॒षा ॥४२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:34» मन्त्र:42


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (वचस्या) वचन और (कामेन) कामना करके (कृतः) सिद्ध (पूषा) पुष्टिकर्त्ता जगदीश्वर वा आप्तजन (शुरुधः) शीघ्र दुःखों को रोकनेवाले (चन्द्राग्राः) प्रथम से ही आनन्दकारी साधनों को (नः) हमारे लिये (रासत्) देवे। (धियं धियम्) प्रत्येक बुद्धि वा कर्म को (प्रसीषधाति) प्रकर्षता से सिद्ध करे, (सः) वह शुभ गुण, कर्म, स्वभावों को (अभि, आनट्) सब ओर से व्याप्त होता, उस (अर्कम्) पूजनीय (पथस्पथः) प्रत्येक मार्ग के (परिपतिम्) स्वामी की हम लोग स्तुति करें ॥४२ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो जगदीश्वर सबके सुख के लिये वेद के प्रकाश की और आप्त पुरुष पढ़ाने की इच्छा करता, जो सबके लिये श्रेष्ठ बुद्धि, उत्तम कर्म और शिक्षा को देते हैं, उन सब श्रेष्ठ मार्गों के स्वामियों का सदा सत्कार करना चाहिये ॥४२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(पथस्पथः) मार्गस्य (परिपतिम्) स्वामिनम् (वचस्या) वचसा वचनेन। अत्र सुपां सुलुग्० [अ०७.१.३९] इति सूत्रेण विभक्तेर्यादेशः। (कामेन) (कृतः) निष्पन्नः (अभि) अभितः (आनट्) व्याप्नोति (अर्कम्) अर्चनीयम् (सः) (नः) अस्मभ्यम् (रासत्) ददातु (शुरुधः) याः शुरुधो दुःखानि रुन्धन्ति ताः (चन्द्राग्राः) चन्द्रमा ह्लादनमग्रं मुख्यं यासान्ताः (धियं धियम्) प्रज्ञां प्रज्ञां कर्म कर्म वा (सीषधाति) साध्नुयात् (प्र) (पूषा) पुष्टिकर्त्ता ॥४२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यो वचस्या कामेन कृतः पूषाः जगदीश्वर आप्तो वा शुरुधः चन्द्राग्राः साधनानि नो रासद्धियं धियं प्रसीषधाति स शुभगुणकर्मस्वभावानभ्यानट् तमर्कं पथस्पथः परिपतिं वयं स्तुयाम ॥४२ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यो जगदीश्वरः सर्वेषां सुखाय वेदप्रकाशं कामयत आप्तोऽध्यापयितुमिच्छति, यौ सर्वेभ्यः श्रेष्ठां सत्कर्मशिक्षां च प्रदत्तस्तौ सर्वसन्मार्गस्वामिनौ सदा सत्कर्त्तव्यौ ॥४२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जो जगदीश्वर सर्वांच्या सुखासाठी वेद प्रकट करतो व आप्त पुरुष इतरांना त्यांचा उपदेश करतात आणि सर्वांना श्रेष्ठ बुद्धी, उत्तम कर्म व सुसंस्कार (शिक्षण) देतात त्या श्रेष्ठ मार्गाकडे वाटचाल करणाऱ्या लोकांचा नेहमी सत्कार केला पाहिजे.